वो क्या है कि मैं रोता नहीं…
आंसूओ को समेट कर समंदर बना रहा हूँ…
लोगों को मैं थोड़ा बेपरवाह नज़र आ रहा हूँ…
इस किराय की हँसी से ज़िंदगी की हार छुपा रहा हूँ…
वो क्या है कि मैं लाचार नहीं बन पा रहा हूँ…
आंसूओ से कमाई भीड़ का हकदार नहीं बनना चाह रहा हूँ…
मेरी इस हँसी पर चल रहे मुकदमें रोज़ हार रहा हूँ…
मैं आंसू पर इलज़ाम नहीं, इस भाड़े की हँसी का इंसाफ माँग रहा हूँ…
वक्त रहते इस झूठी हँसी के पीछे की वजह जान लेना…
एक अरसे से उन बूंदों को अपने अंदर समेटता आ रहा हूँ…
वो क्या है कि मैं रोया नहीं बस समय हँसकर गुजा़र रहा हूँ…
:-प्रथमेष 🖋
बहुत बढ़िया
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Thank you❤
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Beautifully written 🙂
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Thank you❤
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Very nice bro ☺️
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Thank you❤
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Very beautifully written, I can feel the emotions. Keep at it. ❤️ Splendid ♥️
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Good work dude
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